Lyrics of the Faiz tarana
दरबार ऐ वतन में जब एक दिन, सब जाने वाले जायेगें
कुछ अपनी सज़ा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगें
ऐ खाकनाशीनों उठ बैठो, वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब ज़िन्दानों की खैर नहीं
जो दरिया झूम के उठे हैं, तिनकों से ना ताले जायेंगे
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहोत हैं सर भी बहोत
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे
ऐ ज़ुल्म के मारो लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र उनसे उठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे
I composed this tarana in the summer of 2012 sometime. Will look up the date for that later. recording in Feb 2013, as part of the Public Art Production project.
दरबार ऐ वतन में जब एक दिन, सब जाने वाले जायेगें
कुछ अपनी सज़ा को पहुंचेंगे, कुछ अपनी जजा ले जायेंगें
ऐ खाकनाशीनों उठ बैठो, वो वक़्त करीब आ पहुंचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे
अब टूट गिरेंगी जंजीरें, अब ज़िन्दानों की खैर नहीं
जो दरिया झूम के उठे हैं, तिनकों से ना ताले जायेंगे
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो, बाजू भी बहोत हैं सर भी बहोत
चलते भी चलो के अब डेरे मंजिल पे ही डाले जायेंगे
ऐ ज़ुल्म के मारो लब खोलो, चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हश्र उनसे उठेगा, कुछ दूर तो नाले जायेंगे
I composed this tarana in the summer of 2012 sometime. Will look up the date for that later. recording in Feb 2013, as part of the Public Art Production project.
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